Vigyapan Dot Com

Sethi, R. (2012). Vigyapan Dot Com (First ed.). New Delhi, India: Vani Prakashan. ISBN No. 978-93-5000-895-9

मीडिया और मनोरंजन जगत में अपना वर्चस्व क्षेत्र स्थापित करने वाले ‘विज्ञापन’ की सत्ता उसके विविधमखी उद्देश्यों पर टिकी है। उसका इतिहास न केवल इन सन्दों को उजागर करता है, बल्कि उसके बढ़ते प्रसार क्षेत्र को समझने की अंतर्दृष्टि भी देता है। प्रस्तुत अध्ययन में उसके सैद्धांतिक पक्ष का विवरण देते हुए उसकी बदलती अवधारणाओं, इतिहास और वर्गीकरण का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया गया है। विज्ञापन निर्माण एक जटिल प्रक्रिया है। मीडिया अध्ययन की कक्षाओं में हम साधारणतः विद्यार्थियों को विज्ञापन बनाने का काम सौंप देते हैं। विषय और भाषा में दक्षता रखने वाले विद्यार्थी भी ऐसे समय पर चूक जाते हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए ही यहाँ विज्ञापन निर्माण प्रक्रिया को अत्यन्त विस्तारपूर्वक समझाया गया है। एक माध्यम से दूसरे माध्यम की आवश्यकताएँ भी भिन्न होती हैं। माध्यम के आधार पर विज्ञापन निर्माण में कई फेर-बदल करने पड़ते हैं। उन सब विशिष्टताओं को आधार बनाकर ही यहाँ विज्ञापन संरचना के रचनात्मक बिन्दुओं को उकेरा गया है। यह स्पष्टीकरण भी आवश्यक है कि यह पूरी निर्माण-प्रक्रिया की जानकारी विज्ञापन क्षेत्र से जड़े लोगों से हुई सीधी बातचीत पर आधारित है। इसके लिए में लो इंडिया विज्ञापन एजेंसी के श्री देवप्रिय दाम की विशेष रूप से आभारी हूँ जिन्होंने मेरे लिए इस क्षेत्र को सुगम बनाया। एक समस्या यह भी रही कि विज्ञापन का क्षेत्र अत्यन्त गतिशील है। हर क्षण कुछ न कुछ बदल रहा है। इसलिए आज जो उदाहरण दिए गये वे कल पुराने पड़ जाएंगे। आज जिन सर्जनात्मक नीतियों की विलक्षणता को सराहा जा रहा है वह जल्द ही बासी होकर चुक जाएँगी। पुस्तक के लिखते-लिखते भी यह परिवर्तन सामने आए। डेरी मिल्क का स्लोगन ‘कछ मीठा हो जाए’ जिसे बार-बार पुस्तक में उद्धृत किया गया है पुस्तक के प्रकाशित होने से पूर्व ही नयी सृजनात्मक नीति के तहत उसे बदलकर डेरी मिल्क को ‘शुभारम्भ’ से जोड़ दिया गया। इसी तरह अनुजा चौहान जो ‘जे.डब्ल्यू.टी.’ की वाइस प्रेसिडेंट थीं छुट्टी पर चली गयीं और इस बीच उनका दूसरा उपन्यास ‘बैटल फॉर बिटोरा’ प्रकाशित हुआ। पुस्तक में पूरी सूचना दी जाए और सही सूचना दी जाए इसका आग्रह रहने पर भी जब तक पुस्तक पाठक के हाथों में पहुँचेगी कुछ और तथ्य भी बदल जाएँगे। उन स्थितियों पर किसी का कोई वश नहीं है। यह परिवर्तनशीलता ही विज्ञापन जगत को इतना चुनौतीपूर्ण बनाती है। इस चुनौती को पूरी ईमानदारी से निभाने की कोशिश की है, इसी का संतोष है।

Scroll to Top