‘विज्ञापन डॉट कॉम’ तथा ‘विज्ञापन : भाषा और संरचना’

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विज्ञापन का स्वरूप व्यावसायिक और रचनात्मक दोनों है। व्यावसायिक उद्देश्यों को वहन करते हुए भी अपनी संरचना और प्रस्तुति में विज्ञापन सर्जनात्मक माध्यम है। उसका संबंध जहाँ एक ओर लोगों के सपनों, आशाओं, रुचियों और आवश्यकताओं से है, वहीं उनके जीवन जगत, संस्कृति और रिवाजों से भी है। इसलिए विज्ञापन की संरचना के लिए विशिष्ट रचनात्मक प्रतिभा चाहिए जो भाव और भाषा की क्षमताओं को संचार तकनीकों से प्रभावशाली ढंग से जोड़ पाए। भाषिक अभिव्यक्ति के रूप में विज्ञापन की अपनी अलग सत्ता है। विज्ञापन की भाषा का स्वरूप साहित्यिक भाषा से अलग होता है। वह व्याकरण के रूढ़ ढाँचे तक सीमित न रहकर भाषा का नित नया मुहावरा गढ़ते हुए उसके अर्थ का विस्तार करती है।

इधर, विज्ञापन निर्माण में विज्ञापन एजेंसियों का महत्त्व भी बढ़ता जा रहा है। ये विज्ञापन एजेंसियाँ किस रूप में कार्य करती हैं? उनके तहत कौन-से विभाग होते हैं? भारत की प्रमुख विज्ञापन एजेंसियाँ कौन-सी हैं? उनके कार्यक्षेत्र का फैलाव कितना है? विशिष्ट विज्ञापन एजेंसियों ने भारत में विज्ञापन के प्रचार-प्रसार और कार्यप्रणाली को किस रूप में बदला है? इन सबकी जानकारी विज्ञापन के अध्येताओं के लिए भी आवश्यक है और मीडिया के उन विद्यार्थियों के लिए भी जो स्वयं विज्ञापन के क्षेत्र से जुड़ना चाहते हैं।

विज्ञापन निर्माण एक जटिल प्रक्रिया है। मीडिया अध्ययन की कक्षाओं में हम साधारणतः विद्यार्थियों को विज्ञापन बनाने का काम सौंप देते हैं। विषय और भाषा में दक्षता रखने वाले विद्यार्थी भी ऐसे समय पर चूक जाते हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए ही यहाँ विज्ञापन निर्माण प्रक्रिया को अत्यंत विस्तारपूर्वक समझाया गया है। एक माध्यम से दूसरे माध्यम की आवश्यकताएँ भी भिन्न होती हैं। माध्यम के आधार पर विज्ञापन निर्माण में कई फेर-बदल करने पड़ते हैं। उन सब विशिष्टताओं को आधार बनाकर ही यहाँ विज्ञापन संरचना के रचनात्मक बिंदुओं को उकेरा गया है। यह स्पष्टीकरण भी आवश्यक है कि इस पूरी निर्माण-प्रक्रिया की जानकारी विज्ञापन क्षेत्र से जुड़े लोगों से हुई सीधी बातचीत पर आधारित है।  प्रस्तुत दोनों पुस्तकें विश्वविद्यालयों के विभिन्न पाठ्‌यक्रमों में विज्ञापन को एक विषय के रूप में पढ़ाए जाने की आवश्यकताओं के अनुसार लिखी गई हैं। मेरे शिक्षण अनुभव ने इस प्रयास में मेरी मदद की। इन्हें लिखते हुए मेरे सम्मुख केवल विद्यार्थी थे और उनकी जिज्ञासाएँ। मेरी यह कोशिश रही है कि विद्यार्थियों को व्यावहारिक जानकारी मिले, जिससे वे अपने अध्ययन का प्रयोग आजीविका से जुड़े क्षेत्रों में कर पाएँ। इन पुस्तकों में मैंने यह प्रयास किया है कि बहुत से उदाहरण देते हुए अपनी बात कहूँ जिससे विज्ञापन निर्माण की पूरी प्रक्रिया स्पष्ट हो जाए। इन पुस्तकों में विज्ञापन के स्वरूप, उसकी संरचना एवं उसके प्रभावों को लेकर विस्तृत शोध किया गया है। ‘विज्ञापन डॉट कॉम’ में विशेष रूप से प्रमुख विज्ञापन एजंसियों, विशिष्ट विज्ञापनों तथा विज्ञापन जगत की महत्त्वपूर्ण हस्तियों के प्रोफाइल प्रस्तुत हैं।

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