Nibandhon ki Duniya: Balmukund Gupt

Sethi, R. (Ed.) (2009). Nibandhon ki Duniya: Balmukund Gupt (First Ed.). New Delhi, India: Vani Prakashan. ISBN No. 978-93-5000-050-2

निबंधों की दुनिया’ श्रृंखला के अंतर्गत इस पुस्तक में  हिंदी के महत्वपूर्ण रचनाकारों के निबंधों का संकलन है। ये सभी रचनाकार हिंदी साहित्य के इतिहास में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। उनके विचार न केवल उनके साहित्य को रोशन करते हैं बल्कि साहित्यिक परंपरा की विकास धारा को भी दिशा देते हैं।

बालमुकुन्द गुप्त का नाम लेते ही शिवशंभु के ऐतिहासिक चिट्ठों की याद आती है, जिनकी वैचारिक प्रखरता और विशिष्ट तेवर ने उसे हिंदी साहित्य की अमर कृति बना दिया। यह एक कृति ही हिंदी निबंध के इस शीर्ष पुरुष की कीर्ति का स्थायी आधार बन चुकी है। लेकिन यह भी उतना ही सच है कि इस अद्वितीय रचना की छाया में बालमुकुन्द गुप्त की रचनात्मकता के अन्य सशक्त आयाम धुँधला से गये। इस संकलन में ‘शिवशंभु के चिट्ठ’ के यादगार निबंध तो हैं ही, रेखा सेठी ने प्रभूत शोध और श्रम से इस विस्तृत और बिखरी सामग्री से उन प्रतिनिधि रचनाओं का भी संकलन किया है जो गुप्त जी के व्यापक सरोकारों और वाग्वैदिग्ध्य की उतनी ही प्रखर छवि पेश करती हैं। जिसे ठेठ हिंदी का ठाट कहते हैं, उसकी छटा इस संकलन की प्रत्येक रचना की पंक्ति-पंक्ति में दिखाई देती है। गुप्त जी ने व्यंग का इस्तेमाल एक नुकीले अस्त्र की तरह किया। उनके व्यंग्य में असहायता की चीख नहीं, सकर्मक चेतना का उद्घोष है। वे तत्कालीन भारतीय समाज की कमियों और कमजोरियों पर भी उतना ही तीखा वार करते हैं जितना ब्रिटिश शासकों पर। बालमुकुन्द गुप्त पराधीन भारत की वेदना के सक्षम प्रवक्ता और भारतीय समाज की कमियों के कटु आलोचक ही नहीं थे, वरन उन्होंने अपनी खास शैली में साहित्य और भाषा की तत्कालीन समस्याओं पर भी बेलाग विचार व्यक्त किए। इसके कुछ महत्त्वपूर्ण उदाहरण भी इस पुस्तक में पढ़ने को मिलेंगे। हिंदी की ताकत और सरोकारों की गहराई का साक्षात्कार करने के इच्छुक पाठक समुदाय के लिए एक संग्रहणीय पुस्तक, जिसे पढ़ने का आनंद हासिल करने के लिए कभी भी हाथ में लिया जा सकता है।

पुस्तक के फ्लैप से

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