समय की कसक

सेठी, आर. (2018)। समय की कसक (सुकृता की कविताएँ) (पहला संस्करण)। नई दिल्ली, भारत: वाणी प्रकाशन। आईएसबीएन नंबर 978-93-87648-62-3

“सुकृता की कविताओं में संवेदना का घनत्व हमेशा आकर्षित करता है। देश-देशान्तर में घूमते हुए कई चीज़ें उनका ध्यान खींच लेती हैं। चाहे वह पगोडा के मन्दिर हों, हनोई के मिथक, एलोरा की गुफ़ाएँ या औरंगाबाद का शूलीभंजन मन्दिर। कवयित्री उन्हें ऐसे शब्द-बद्ध करती हैं कि चित्र खिंच जाते हैं, बिम्ब उभर आते हैं…सुकृता स्वयं चित्रकार भी हैं। चित्रों की ही तरह यहाँ भी कवयित्री की निगाह हर छोटी-बड़ी बारीकी पर जाती है। शब्दों और रंगों के अलग-अलग बिम्ब, उनकी रचनाधर्मिता को पूरा करते हैं।”

रचने की प्रक्रिया में
मैं, हरदम अपने से आगे ही रहती हूँ
पीछे मुड़कर देखने को कुछ भी नहीं
बाकी बचे वक़्त में
मैं, अपना ही पीछा करती हूँ
आगे देखने को कुछ भी नहीं
मुद्दा सिर्फ़
क़दमताल बनाये रखने का है…

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