विज्ञापन: भाषा और संरचना

सेठी, आर. (2016)। विज्ञापन: भाषा और संरचना (पहला संस्करण)। नई दिल्ली, भारत: वाणी प्रकाशन। आईएसबीएन नंबर 978-93-5000-471-5

विज्ञापन का उदगम सूचना-स्त्रोत के रूप में हुआ। बहुत-से लोगों तक एक साथ सूचना पहुँचाना उसका लक्ष्य था, जो आज भी उसके स्वरूप का मुख्य आधार बना हुआ है। भूमंडलीकरण, मीडिया और बाज़ार ने इस स्थिति में परिवर्तन किया। सूचना की प्रणालियाँ विकसित होती गयीं और विज्ञापन का संजाल फैलता चला गया। उद्योग-धन्धों का विकास यूँ भी नये बाज़ार-क्षेत्र तलाश रहा था। विज्ञापन उसका सहयोगी बनकर सामने आया। जनसंचार के फैलते नेटवर्क ने उद्योग और विज्ञापन के रिश्तों को और सुदृढ़ किया।विज्ञापन के व्यावसायिक उद्देश्य अपनी जगह हैं। उसके कुछ सामाजिक दायित्व भी हैं। सूचनाओं का सम्प्रेषण यहाँ भी प्रमुख है। जनसंचार-माध्यमों द्वारा सामाजिक जागरूकता उत्पन्न करने के लिए भी विज्ञापन का उपयोग होता है। उसका दायरा अत्यन्त विस्तृत है।
विज्ञापन क्षेत्र में काम करने की इच्छा रखने वाले विद्यार्थियों के लिए इसे समझना अत्यन्त आवश्यक है कि किसी समय में खरीदने की इच्छा पैदा करना अच्छे विज्ञापन का लक्ष्य बन जाता था जबकि आज खरीदने-बेचने की तकनीकें व प्रणालियाँ बहुत बदल गयी हैं। इस प्रतिस्पर्धा के समय में विज्ञापन का मुख्य उद्देश्य है ब्रांड का छवि-निर्माण, ब्रांड को पहचान देना, बाज़ार की स्पर्धा में उसका स्थान निर्धारित करना व उसे बनाये रखना। यह पुस्तक इन समस्त जानकारियों को उपलब्ध कराने के साथ विज्ञापन निर्माण की प्रक्रिया पर विस्तृत जानकारी देती है। विज्ञापन भाषा की विशेषताओं से लेकर विज्ञापन निर्माण में जिन भाषिक उपकरणों का प्रयोग किया जाता है उसे जानने और समझने की दृष्टि से यह पुस्तक बहुत लाभकारी सिद्ध होगी।

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